Ayodhya Samvaad News Desk : गरीबों, किसानों और बेरोजगारों की दुहाई देने वाले देश और प्रदेश के राजनीतिक दलों को एमपी और एमएलए के लिए केवल कुबेर पति और अपराधी चरित्र के लोग ही भाते हैं। चुनाव के दौरान राजनीतिक दल जिन मतदाताओं के प्रतिनिधि बनने का दावा करते हैं वास्तव में उन मतदाताओं के आर्थिक और सामाजिक वर्ग से प्रत्याशी का ऐलान करने के लिए भी तैयार नहीं होते। बीते दो दशक के दौरान भारतीय जनता पार्टी से लेकर कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में 30 से लेकर 41% तक दागी चेहरों को मैदान में उतारा। खास बात यह भी रही कि जनता जनार्दन ने भी अपराधी चरित्र के लोगों को माननीय बनाने में कोताही नहीं की।
उत्तर प्रदेश इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने उत्तर प्रदेश में 2004 से लेकर अब तक हुए सभी चुनाव में सांसद और विधायक प्रत्याशियों के आपराधिक मामलों और आर्थिक स्थिति का ब्यौरा जारी किया है। उत्तर प्रदेश इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स संस्थाएं पिछले लंबे अरसे से राजनीति में अपराधीकरण और आर्थिक मामलों पर नजर रखे हुए हैं। यह संस्थाएं विभिन्न राजनीतिक दलों के चाल चरित्र और चेहरे को मतदाताओं के सामने उजागर करने का काम कर रही हैं।
2004 से लेकर अब तक यूपी में हुए लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में निर्वाचित हुए सांसद विधायक और उम्मीदवारों के आपराधिक और आर्थिक मामलों का विश्लेषण करने के बाद संस्था ने बताया है कि उत्तर प्रदेश में इस दौरान प्रमुख राजनीतिक दलों की ओर से 21229 प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा गया। संस्था ने लोकसभा और विधानसभा का चुनाव जीतने वाले 1544 सांसद और विधायकों का पूरा लेखा-जोखा मतदाताओं के सामने प्रस्तुत किया है। संस्थान है यह भी स्पष्ट किया है कि सभी सांसद और विधायकों के बारे में की जा रही जानकारी का आधार 2007 2012 और 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रत्याशियों की ओर से चुनाव आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया गया शपथपत्र है। इसी तरह 2004, 2009 ,2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में विजय सांसदों के विवरण शामिल किए गए हैं।
संस्था से मिली जानकारी के अनुसार बीते वर्षों में विभिन्न राजनीतिक दलों ने लोकसभा और उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए जिन 21229 प्रत्याशियों का चयन किया उनमें से 3739 ((18 प्रतिशत) उम्मीदवारों के ऊपर आपराधिक मामले घोषित है। अपराधी चरित्र के इन प्रत्याशियों में 2299 यानी (11 प्रतिशत) उम्मीदवार ऐसे लोगों को बनाया गया जिनके हत्या, बलात्कार, लूट गैंगस्टर जैसे गंभीर आपराधिक मामले घोषित हैं। दिलचस्प यह भी है कि वर्ष 2004 से विजयी 1544 सांसदों/विधायकों में से 604 (39 प्रतिशत) सांसदों/विधायकों पर आपराधिक मामले एवं 380 ((25 प्रतिशत) ने अपने घोषणा पत्र में गंभीर आपराधिक मामले घोषित किये है।
अपराध के हमाम में सभी राजनीतिक दल नंगे
राजनीतिक शुचिता और सक्रियता की बड़ी-बड़ी बात करने वाले राजनीतिक दल भी अपराध के दलदल में गले गले तक डूब चुके चेहरों को सीना ठोक कर अपना प्रत्याशी बनाते रहे हैं ।अपराधियों को राजनीति की गंगा में शुद्ध करने के लिए राजनीतिक दलों के पास अजब गजब के तर्क हैं। हत्या और बलात्कार जैसे मामलों के गंभीर आरोपियों को भी राजनीतिक दलों के नेता राजनीतिक विद्वेष के कारण दर्ज मुकदमे बताकर पल्ला झाड़ते रहे हैं। 2004 से अब तक कांग्रेस से चुनाव लडने वाले 1102 प्रत्याशियों में से 325 यानी (29 प्रतिशत) प्रत्याशी ऐसे रहे हैं जिन्होंने अपने ऊपर दर्ज आपराधिक मामलों की जानकारी चुनाव आयोग से साझा की है। केंद्र और राज्य में सत्तारूढ़ बीजेपी के 1410 में से 473 (34 प्रतिशत), बीएसपी के 1466 में से 527 (36 प्रतिशत), एसपी के 1329 में से 541 (41 प्रतिशत), आरएलडी के 584 में से 114 (20 प्रतिशत) और 6725 में से 612 (9 प्रतिशत) निर्दलीय उम्मीदवारों ने अपने ऊपर आपराधिक मामले घोषित किये है।
शातिर अपराधियों को टिकट देने में बसपा सपा अव्वल भाजपा दूसरे नंबर पर
कांग्रेस से चुनाव लडने वाले 174 (16 प्रतिशत), बीजेपी के 279 (20 प्रतिशत), बीएसपी के 345 (24 प्रतिशत), एसपी के 325 (24 प्रतिशत), आरएलडी के 80 (14 प्रतिशत) और 389 (6 प्रतिशत) निर्दलीय उम्मीदवारों ने अपने ऊपर गंभीर यानी हत्या लूट बलात्कार जैसे आपराधिक मामले घोषित किये है।
वर्ष 2004 से कांग्रेस के 88 में से 31 (35 प्रतिशत) सांसदों/विधायकों ने अपने ऊपर आपराधिक मामले घोषित किये है। बीजेपी के 573 में से 225 (39 प्रतिशत), बीएसपी के 363 में से 125 (34 प्रतिशत), एसपी के 432 में से 184 (43 प्रतिशत), आरएलडी के 29 में से 6 (21 प्रतिशत) और 20 में से 15 (75 प्रतिशत) निदर्लीय सांसदों/विधायकों ने अपने ऊपर आपराधिक मामले घोषित किये हैं। वही कांग्रेस के 18 (20 प्रतिशत), बीजेपी के 163 (28 प्रतिशत), बीएसपी के 71 (20 प्रतिशत), एसपी के 98 (23 प्रतिशत), आरएलडी के 4 (14 प्रतिशत) और 13 (65 प्रतिशत) निर्दलीय सांसदों/विधायकों ने अपने ऊपर गंभीर आपराधिक मामले घोषित किये है।
कुबेरपतियों पर भी सभी राजनीतिक दल हमेशा रहे मेहरबान
अगर बात प्रत्याशियों की वित्तीय पृष्ठभूमि की जाये तो 21229 उम्मीदवारों की औसतन सम्पत्ति 1.46 करोड है। वही 2004 से विजयी 1544 सांसद/ विधायकों की औसतन सम्पत्ति 4.60 करोड रूपये है। बीजेपी के 1410 उम्मीदवारों की औसतन सम्पत्ति 3.73 करोड, कांग्रेस के 1102 उम्मीदवार की 4.60 करोड, बीएसपी के 1466 प्रत्याशियों की 4.55 करोड, एसपी के 1329 उम्मीदवार की 3.35 करोड और निर्दलीय 6725 उम्मीदवारों की औसतन सम्पत्ति 39.49 लाख है। वही अगर राजनीतिक दलों के अनुसार प्रत्याशियों का विश्लेषण किया जाए तो बीजेपी के 573 सांसदों/विधायकों की औसतन सम्पत्ति 6.39 करोड, कांग्रेस के 88 सांसदों/विधायकों की 5.53 करोड, बीएसपी के 363 सांसदों/विधायकों की 3.69 करोड, एसपी के 432 सांसदों/विधायकों 2.84, और निर्दलीय 20 सांसदों/विधायकों की औसतन सम्पत्ति 2.97 करोड है।
वर्ष 2004 से चुनाव लडने वाले 21229 उम्मीदवारों में से केवल 1641 (8 प्रतिशत) महिला उम्मीदवार है। वही 147 महिलाऐं सांसद/विधायक चुनाव जीती है। 1641 महिला उम्मीदवारों की औसतन सम्पत्ति 2.19 करोड है वही 147 महिला सांसद/विधायकों की औसतन सम्पत्ति 8.31 करोड है।
यूपी इलेक्शन वॉच एडीआर उत्तर प्रदेश के प्रमुख संजय सिंह ने आंकड़ों का ब्यौरा जारी करते समय कहा कि जिस तरह से देश और प्रदेश की राजनीति में पूंजीपतियों और बाहुबलियों का प्रभाव बढ़ रहा है उससे लोकतंत्र की स्वच्छता और गरिमा की रक्षा करना सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। धनबल और बाहुबल के प्रयोग से लोकतंत्र के मूल उद्देश्य को ही विफल किया जा रहा है। गजब बात यह है कि इसमें सभी राजनीतिक दल बराबर की साझेदारी निभा रहे हैं मतदाताओं के सामने कुबेर पतियों और बाहुबलियों को चुनने के अलावा दूसरा विकल्प ही नहीं है। चुनावी राजनीति में अपराधियों का बोलबाला बढ़ता जा रहा है यह भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है