Ayodhya News : महाशिवरात्रि की पहली पूजा कब और किस देवता ने की, इस बार ब्रह्म मुहूर्त से शुरू हो जाएगी महाशिवरात्रि पूजा, जान लीजिए पूजा के 7 विशेष मुहूर्त

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Mahashivratri News : भगवान भोले शंकर को मनाने के लिए भक्त बड़ी आतुरता के साथ महाशिवरात्रि की प्रतीक्षा करते हैं। प्रतीक्षा की घड़ी इस बार 1 मार्च यानी मंगलवार को समाप्त हो रही है। भगवान भोले शंकर की कृपा पाने के लिए भक्त ब्रह्म मुहूर्त से ही पूजा प्रारंभ कर देंगे। भगवान भोले शंकर की महाशिवरात्रि पूजा का भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी से गहरा नाता है। सृष्टि में इन्हीं दोनों देवताओं ने सबसे पहले फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी वेधी त्रयोदशी को भगवान शंकर के लिंग अर्थात पहचान चिन्ह की पूजा की थी। इस बार भोले शंकर की पूजा के लिए महाशिवरात्रि पर दिन में पूजा के छह राजयोग मिल रहे हैं तो 24 घंटे में पूजा के 7 ऐसे मुहूर्त भी हैं जिनमें पूजा बेहद फलदाई है।

क्यों मनाई जाती है महाशिवरात्रि

भगवान भोले शंकर की विशेष पूजा हर पखवारे त्रयोदशी को की जाती है। इसे शिवरात्रि भी कहा जाता है लेकिन फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी वेधी त्रयोदशी को महाशिवरात्र कहा गया है। इस पर्व से जुड़ी एक मान्यता है कि इस दिन भगवान शंकर का माता पार्वती के साथ विवाह हुआ था। इसी उपलक्ष में महाशिवरात्रि मनाई जाती है लेकिन शिव पुराण के अनुसार महाशिवरात्रि के अवसर पर ही शिवलिंग से सृष्टि का प्रारंभ हुआ था। इसलिए इसे महाशिवरात्रि के तौर पर मनाया जाता है।

कथा कुछ यूं है कि एक बार भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी में कौन श्रेष्ठ है इसको लेकर विवाद हुआ तो दोनों लोग देवों के देव महादेव के पास पहुंचे। महादेव तपस्या में लीन थे और आकाशवाणी के साथ ही दोनों देवताओं के समक्ष एक खंभे जैसी आकृति उत्पन्न हुई। भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी को इस खंभे के अंतिम छोर का पता लगाने के लिए कहा गया। यह हुआ कि जो इस खंभे का पता लगाकर पहले लौटेगा उसे ही दोनों देवताओं में श्रेष्ठ माना जाएगा। भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा ने खंभे के दोनों छोर की ओर दौड़ लगा दी लेकिन अंतिम छोर तक नहीं पहुंच सके। दोनों ने ही खंभे के समक्ष झुककर प्रणाम किया और उसे ही भगवान शंकर का पहचान चिन्ह यानी लिंग मानकर पूजा की। शिव पुराण के अनुसार दोनों देवताओं ने त्रयोदशी में शिवलिंग के अंतिम छोर को जानने की शुरुआत की और चतुर्दशी तिथि लगने पर आधी रात में हार मान ली और शिवलिंग की पूजा अर्चना की। इसलिए तब से भगवान शंकर के प्रतीक चिन्ह के तौर पर खंभे के रूप आकार वाले शिवलिंग की पूजा की जाती है। इसे उसी तरह से माना जा सकता है जैसे आप किसी वस्तु या स्थान के पर्याय के तौर पर किसी शब्द या संकेत चिन्ह का प्रयोग करते हैं तो भगवान शंकर के पहचान रूप में बेलनाकार को मान्यता दी गई। भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु ने क्योंकि इसी रूप की पूजा की थी इसलिए शिव मंदिरों में हर स्थान पर शिवलिंग की स्थापना की जाती है। हिमालय में केदारनाथ और पंच केदार मंदिरों में भगवान शिव के रूप इससे भिन्न प्राप्त होते हैं।

दुर्लभ है इस बार महाशिवरात्रि पर ग्रहों का संयोग

ज्योतिष विद्वान पंडित प्रभाकर त्रिपाठी के अनुसार महाशिवरात्रि पर इस बार पंच ग्रही योग बन रहा है। इस दिन मकर राशि में चंद्रमा, मंगल ,बुध, शुक्र और शनि ग्रह एक साथ उपस्थित रहेंगे। एक ही रात में इन ग्रहों के होने से पंच ग्रही योग बन रहा है। इसके साथ ही इस महापर्व पर कुंभ राशि में सूर्य और गुरु दोनों ग्रह की युति बन रही है जो विशेष तौर पर शुभ फल देने वाली है। ऐसे में महाशिवरात्रि पर इस बार होने वाली पूजा का शुभ फल कई गुना बढ़ जाएगा। वह बताते हैं कि इस बार महाशिवरात्रि पर शिव योग के साथ ही शंख, हर्ष, दीर्घायु, पर्वत और भाग्य नाम के राज योग भी बन रहे हैं शिव महा शिवरात्रि पर ग्रहों की जो इस्थित इस बार बन रही है वैसी पिछले कई सालों में कभी नहीं बनी।

परम योगी आदि शिव @ayodhyasamvad

महाशिवरात्रि पर शिव पूजा के विशेष मुहूर्त

सुबह 6:05 से 8:55 तक

सुबह 9:40 से दोपहर 2:00 बजे तक

दोपहर 3:30 बजे से शाम 5:00 बजे तक

काशी विश्वनाथ दर्शन @ayodhyasamvad

महाशिवरात्रि की चार प्रहर पूजा मुहूर्त

संध्या काल में 6:25 से 9:31 तक

9:31 से 12:37 तक

12:37 से 3:43 तक

3:43 से अगले दिन सुबह 6:49 तक

महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा की सामग्री

हिंदू देवी देवताओं की पूजा के लिए वैसे तो भाव पूजा को सर्वश्रेष्ठ पूजा माना गया है। ऐसे में पूजन सामग्री के अभाव में केवल पूजा सामग्री का नाम उल्लेख कर भी मानसिक पूजा की जा सकती है। अन्य देवी देवताओं की तुलना में भगवान भोले शंकर को औगढ़दानी और भोले भंडारी कहा गया है। उनकी पूजा के लिए किसी विशेष वस्तु की आवश्यकता नहीं है। इसके बावजूद जिन पूजन सामग्री का उल्लेख भगवान शंकर की पूजा के लिए किया जाता है वह सब ऐसी वस्तुएं हैं जो प्रकृति में सहज सरल तरीके से सुलभ हैं। प्रकृति में यत्र तत्र सर्वत्र भगवान शंकर की पूजा के लिए विहित पूजन सामग्री इस तरह उपलब्ध है कि उसे थोड़े से श्रम से कोई भी प्राप्त कर सकता है इसके लिए विशेष धन की आवश्यकता नहीं है।

भगवान केदारनाथ भव्य दर्शन @ayodhyasamvad

गंगाजल, स्वच्छ जल, दूध ,दही, शहद, घी ,शक्कर, मौली, चंदन ,बिल्व पत्र, फूल माला, धतूरा, मदार के फूल, मौसमी फल, बेर, गन्ने का टुकड़ा, रुद्राक्ष, गाय के सूखे गोबर का भस्म , दीपक और अगरबत्ती।

पूजा मंत्र : ओम नमः शिवाय

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