Ayodhya News: सरस्वती पुत्र महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की जयंती आज, मशहूर है उनके फक्कड़पन का यह किस्सा

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अयोध्या । हिंदी के महान कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को सरस्वती पुत्र कहा गया तो इसका बड़ा कारण मां वीणा वादिनी के उन पर साक्षात कृपा तो है ही, महाप्राण निराला का जन्मदिन भी बसंत पंचमी के दिन ही मनाया जाता है। वाणी पुत्र निराला ने अपने जीवन में धन,ऐश्वर्य और प्रभुता को कभी महत्त्व नहीं दिया उनके जीवन से जुड़े कई ऐसे किस्से हैं जो उनके फक्कड़ और मनमौजी स्वभाव का साक्षात प्रमाण हैं। ऐसा ही एक उनका बड़ा मशहूर कैसा देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ भी जुड़ा हुआ है।

महादेवी वर्मा के साथ महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला। फोटो -सोशल मीडिया

महाप्राण निराला के जीवन से जुड़ा देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद का किस्सा ऐसा है जो इस बात का प्रमाण है कि वाणी पुत्र निराला ने मां सरस्वती की सदैव आराधना की और राज सिंहासन की ओर कभी मुंह उठाकर भी नहीं देखा। अलबत्ता उन्होंने राजप्रासादों को सरस्वती देवी का कृपा पात्र बनाए रखा। प्रथम राष्ट्रपति के साथ जुड़ा किस्सा कुछ यूं है कि एक बार डॉ.राजेंद्र प्रसाद प्रयागराज दौरे पर पहुंचे तो सरकारी बंगले में ठहरे थे। राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद महाकवि निराला से बेहद प्रभावित थे तो उनसे मिलने की इच्छा व्यक्त की। उन्होंने अपने पीए से कहा कि वह निरालाजी पास जाए और उन्हें अपने साथ लेकर आए। राष्ट्रपति के पीए को निराला के स्वभाव के बारे में जब पता चला तो उसने महादेवी वर्मा से सहायता मांगी क्योंकि प्रयागराज में इकलौती महादेवी जी ही थीं जिन्हें निराला अपनी बहन मानते थे और उनकी बात कभी नहीं टालते थे। इसी विश्वास से वे महादेवी के साथ निराला को लेने दारागंज पहुंचे। महादेवी ने अवसर के अनुकूल देखकर बात की और राष्ट्रपति के आग्रह के बारे में बताया। महादेवी वर्मा ने निराला से कहा कि आपको लेने मोटर आयी हुई है और महामहिम आपसे मिलना चाहते है। इस पर निराला ने जो जवाब दिया वह उनके फक्कड़पन तो दर्शाता ही है साथ ही यह भी सिद्ध करता है कि महाकवि निराला ने मां वीणापाणि की श्रेष्ठता को सदैव उच्च स्थान पर बिठाए रखा। अवसर आने पर भी वह कभी संसार की लोक प्रसिद्धि और ऐश्वर्य के मुकाबले साहित्यकार की गरिमा और महत्ता को कम करने के लिए तैयार नहीं हुए। महाकवि ने महादेवी से कहा कि अगर राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद मुझसे मिलना चाहते हैं, मिलने की इच्छा उनकी है तो वह खुद भी मेरे पास चल कर आ सकते थे। जैसे निराला उनके पास जाए वैसे ही राजेंद्र प्रसाद भी निराला के पास आ सकते हैं और अगर राष्ट्रपति की हैसियत से मुझे बुला रहे हैं तो मुझे राष्ट्रपति से कुछ नहीं लेना देना। वे राष्ट्रपति हैं तो मैं भी साहित्यपति हूं। महाकवि निराला के जवाब के बाद अब महादेवी जी के पास भी कोई चारा नहीं था। डॉ राजेंद्र प्रसाद के पीए निराश होकर वापस चले गए।

बकरी के साथ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और महामना मदन मोहन मालवीय। फोटो- सोशल मीडिया

बेलाग लपेट जीवन जीने वाले महाकवि निराला से जुड़ा हुआ एक किस्सा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से भी संबंध रखता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की उन दिनों पूरे देश में बड़ी धूम थी। उन्हें देशवासी महानायक मान रहे थे, उन्हीं दिनों महात्मा गांधी का एक लेख प्रकाशित हुआ जिसमें उन्होंने कहा कि हिंदी साहित्य में कोई भी रविंद्र नाथ टैगोर नहीं है। महात्मा गांधी ने यह बात रविंद्र नाथ टैगोर के साहित्य से प्रभावित होकर कही थी लेकिन हिंदी साहित्य प्रेमियों को यह बात बहुत खराब लगी। महाकवि निराला से भी यह बर्दाश्त नहीं हुआ। उन्हीं दिनों महात्मा गांधी प्रयागराज आए और स्वराज भवन में ठहरे हुए थे। महात्मा गांधी से मिलकर प्रतिवाद करने के लिए निराला जी स्वराज भवन के लिए महादेवी जी के साथ पैदल ही चल पड़े। रास्ते में महाकवि निराला ने देखा कि एक तांगे पर बकरी सवार है और तांगा स्वराज भवन की ओर जा रहा है। निराला जी ने महादेवी से कहा कि हिंदी का महाकवि पैदल जा रहा है और बकरी तांगे पर सवार है। जरूर यह बकरी बापू की होगी। निराला जब स्वराज भवन पहुंचे तो वास्तव में वह बकरी बापू के लिए ही स्वराज भवन लाई गई थी क्योंकि बापू को बकरी का दूध पीना था। बाद में महाकवि निराला ने बापू की बकरी के नाम से एक संस्मरण लिखा जो काफी मशहूर हुआ। ऐसे फक्कड़ जीवन जीने वाले वाणी पुत्र महाकवि निराला को अयोध्या संवाद की ओर से भी भावपूर्ण नमन। उनका साहित्य सदियों तक अमर है।

लखनऊ के निराला चौक पर महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की प्रतिमा को धुलते हुए जो युवा साहित्य प्रेमी।( फाइल फोटो) साभार सोशल मीडिया

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