अयोध्या। अयोध्या का नागेश्वरनाथ मंदिर देश के शिवालयों में अहम स्थान रखता है। कहा जाता है कि भगवान श्रीराम के पुत्र कुश ने सरयूतट पर इनकी स्थापना की थी। यहां पर भगवान महादेव नागों के प्राणों की रक्षा करने के लिए प्रकट हुए, जिसके कारण वे नागेश्वरनाथ के नाम से प्रसिद्ध हैं। भगवान श्रीरामलला की जन्मभूमि पर बने मंदिर की ही तरह भगवाान शिव का त्रेता युग का यह प्रमुख मंदिर 27 विदेशी आक्रमणों को झेल चुका है।

नागेश्वरनाथ मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष श्यामनेत्र दास ने बताया कि अयोध्या की पहचान सरयू की अविरल धारा के समीप भगवान शिव का यह शिवालय नागेश्वरनाथ असंख्य शिवभक्तों की आस्था और श्रद्धा का केंद्र है। मान्यता के अनुसार, सावन मास में भगवान का अभिषेक करने से भक्त सभी पापों से मुक्त हो जाता है। मलमास, शिवरात्रि में शिवालय में भगवान शिव के पूजन और अभिषेक से व्यक्ति की सभी कामनाएं पूरी होती हैं। शिवालय की स्थापना के विषय में बहुत से आख्यान और संर्दभ प्राप्त होते हैं। श्रृंगार के बाद इस रूप में सायंकाल दर्शन देते हैं नागेश्वरनाथ।

स्वप्न के आधार पर कुश अयोध्या आए, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीराम अनंत धाम जाने से पूर्व अयोध्या राज्य को आठ भागों में बांट दिया था। उन्होंने भरत के पुत्र पुष्कल और मणिभद्र लक्ष्मण के पुत्र अंगद और सुबाहु और शत्रुघ्न के पुत्र नील और भद्रसेन और अपने पुत्र लव और कुश को समान भागों में बांट दिया। इसमें कुश को कौशांबी का राज्य मिला। एक रात कुश को स्वप्न आया, जिसमें अयोध्या नगरी उनसे कह रही थी कि भगवान श्रीराम के अनंत धाम जाने के बाद मेरी स्थित पूर्व की भांति नही रह गई। अयोध्या की जिम्मेदारी हनुमानजी को सौंपी गई थी। लेकिन, वे अपने स्वामी की गद्दी पर बैठना अनुचित मानते हैं। इस कारण आप आकर अयोध्या पर शासन करें। इस स्वप्न के आधार पर कुश अयोध्या आकर इसे अपनी राजधानी बनाकर रहने लगे। नागेश्वरनाथ मंदिर का अस्तित्व 27 विदेशी आक्रमणों के बाद भी अखंडित है।
शिव पुराण के एक आलेख के अनुसार, एक बार नौका बिहार करते समय उनके हाथ का कंगन सरयू में गिर गया। कंगन सरयू में वास करने वाले कुमुद नाग की पुत्री के पास गिरा। यह कंगन वापस लेने के लिए राजा कुश और नाग कुमुद के बीच घोर संग्राम हुआ। जब नाग को यह लगा कि वह यहां पराजित हो जाएंगे, तो उन्होंने भगवान शिव का ध्यान किया। भगवान ने स्वंय प्रकट होकर युद्ध को रूकवाया।कुमुद ने कंगन देने के साथ भगवान शिव से यह अनुरोध है कि उनकी पुत्री कुमुदनी का विवाह कुश के साथ करवा दें। कुश ने इसे स्वीकार किया और भगवान शिव से यह अनुरोध किया कि वे स्वयं यहां निवास करें। भगवान शिव ने उनकी इस याचना को स्वीकार कर लिया। नागों के ध्यान (रक्षा करने के लिए) करने पर भगवान शिव प्रकट हुए थे। इस कारण इसे नागेश्वर नाथ के नाम से जाना जाता है। इसके बाद राजा कुश ने अयोध्या में नागेश्वर नाथ मंदिर की स्थापना की। कुश द्वारा मंदिर के मुख्य द्वार पर एक शिलालेख लगवाया गया था, जो इस समय नष्ट हो चुका है।

नागेश्वरनाथ की महिमा का बखान हिंदू भक्तों के साथ ही अंग्रेजों ने भी किया है। अंग्रेजी विद्वान विंसेटस्मिथ ने लिखा कि 27 आक्रमणों को झेल कर भी यह मंदिर अपनी अखंडता को बनाए है। हैमिल्टान ने लिखा है कि पूरे विश्व में इसके समान दूसरा दिव्य स्थान कोई नहीं है। प्रख्यात विद्वान मैक्समूलर ने लिखा है कि सैकड़ों तूफानों को झेल कर भी यह मंदिर अपनी अडिगता से अपने आप को स्थापित किए हुए है। कनिघंम ने उल्लेख किया है कि प्राणी को सच्ची शांति का विश्व में एक मात्र स्थान यही है। इतिहासकार लोचन का कहना कि रामेश्वरम, सोमनाथ, काशी विश्वनाथ के समान ही अयोध्या के नागेश्वर नाथ का भी शिव आराधना में विशिष्ट स्थान है।