Ayodhya Holi : अयोध्या की होली का रंग मुस्लिमों पर भी खूब चढ़ा, अवध के इस नवाब ने तो बसंत – होली मनाने के साथ फाग गाने में हुरियारों को भी पीछे छोड़ा, मोहम्मद बिन तुगलक की होली रही है मशहूर

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आजादी से मशहूर है अयोध्या शहर चौक की सर्राफा होली

अयोध्या। अवध और श्रीराम की होली से इतर रंगों की इस पर्व की कुछ नई परंपराएं नवाब कालीन परिवेश और उसके बाद कायम हुई है। एक तरफ जहां मंदिरों में रंगभरी एकादशी के साथ होली का उल्लास बिखर जाता है। वहीं दूसरी तरफ नवाबों के द्वारा बसाये गये फैजाबाद नगर में धीरे धीरे सजता होली का बाजार और उनके साथ जुड़ी कुछ परंपराएं सामने आती है। नवाबों के शहर के इतिहास में झांकने पर पता चलता है कि नवाब आसफुदौला बाकायदा बसंत मनाते थे और अपने महल में होली खेलते थे। वह स्वयं फाग भी गाते थे।

अवध के नवाब आसिफुद्दौला photo – social media
इतिहास के चित्रों में दर्ज नवाबों की होली photo – social media


इतिहास में प्रचलित कहानियों के आधार पर यह भी कहा जाता है कि नवाब आसिफुद्दौला ने इस पर्व के लिए स्वयं भी फागों की रचना की थी, जिन्हें गाकर पढ़ते थे। वह एक शायर भी थे और खुद आसिफ नाम से शेर भी लिखते थे। वैसे तो मध्यकाल में होली त्यौहार मनाने वाले हिंदुस्तान के पहले सुल्तान के रूप में मोहम्मद बिन तुगलक को जाना जाता है। इतिहास बताता है कि मोहम्मद बिन तुगलक की होली में विशेष दिलचस्पी थी। भारत के समय में मुगल वंश के सबसे महान शासक अकबर द्वारा भी होली मनाए जाने की बात सामने आती है।

photo – social media
नवाब आसिफुद्दौला के होली खेलने का चित्र photo – social media


आजादी के बाद सन् 1950 में शहर के चौक घंटाघर से होली की एक नई परंपरा देखने को मिलती है। होलिका दहन की रात के पहले दिन में होने वाली बाजार की इस होली को सर्राफा की होली के नाम से जाना जाता है। यह परंपरा तत्कालीन जिलाधिकारी केके नैय्यर तथा सिटी मजिस्ट्रेट ठाकुर गुरुदत्त सिंह के प्रयासों से शुरू हुई थी। इस होली में नगर की समावेशी संस्कृति को रंग से भरते हुए नवाबों द्वारा बसाये गये त्रिपोलिया बाजार (चौक क्षेत्र) में परोसा गया। चौक कि इस होली परंपरा को सहेजने का काम क्रांतिकारी और समाजसेवी केदारनाथ आर्य ,भोला रस्तोगी, महावीर प्रसाद वैद्य और लाला राज किशोर अग्रवाल ने किया था।

होली खेलते हुए अयोध्या के साधु संत photo – social media


सन् 1950 की इस होली को देखने वाले बताते थे कि इंसानों की भीड़ से चौक पट गया था ,पहली बार सार्वजनिक रूप से होली खेलने के लिए इतने लोग जमा हुए थे। सन् 1940 में स्थापित सर्राफा मंडल साकेत ने इस होली का जिम्मा अपने हाथों में सन् 1965 में संभाला ।जिसके उपरांत इस दिन हर वर्ष रंग, ठंढई, पकवान और अन्य व्यवस्थाओं के साथ इस परंपरा का निर्वहन उसी के द्वारा किया जा रहा है। सर्राफा मंडल द्वारा आयोजित किए जाने के कारण इसे सर्राफा की होली कहा जाता है।

अयोध्या चौक में बृहस्पतिवार को खेली गई होली का नजारा @ayodhyasamvad.com


सन् 1970 के दशक में जब फैजाबाद अयोध्या संयुक्त नगर पालिका के अध्यक्ष पद की कमान समाजसेवी महेश चंद्र कपूर ने संभाली तो वह भी इस आयोजन से जुड़ गए और नगरपालिका के टैंकरों से जल उपलब्ध कराकर होली के रंग को और गाढा किया। तब से यह परंपरा निरंतर चली आ रही है। प्रत्येक वर्ष होलिका के दहन के पहले चौक बाजार में होली का रंग जम चुका होता है।आज दिन में एक बार फिर सर्राफा बाजार ने परम्परा निभाते हुए जमकर होली खेली।

* दीपक मिश्र

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